प्रधान / सदस्य

ग्राम पंचायत लूठाकलाँ
ब्लॉक : चिराईगाँव
पोस्ट :
वरियासनपुर
थाना : चौबेपुर
जिला : वाराणसी – 221112
पंचायत में कुल वार्डों की संख्या : 15
पंचायत का सालाना बजट : 12 लाख
बी. पी. एल. परिवार : 382
ए.पी. एल. परिवार : 840


शिक्षा केंद्र

 

प्राइमॅरी विधालयों की संख्या
01
माध्यमिक विधालयों की संख्या
00
इंटर कॉलेजों की संख्या
00
डिग्री कॉलेजों की संख्या
00
आँगन बाड़ी केंद्रों की संख्या
03
पौंड शिक्षा केंद्रों की संख्या 00
रात्रि शिक्षा केंद्रों की संख्या
00
कंप्यूटर शिक्षा केंद्रों की संख्या
00
तकनीकी शिक्षा केंद्रों की संख्या
00
अध्यापकों की संख्या
02
अध्यापीकाओं की संख्या
03
शिक्षा मित्रों की संख्या
02
प्रधानाचार्यों की संख्या
01
छात्रों की संख्या
290
छात्राओं की संख्या
120

कृषि

गाँव में रबी, खरीफ व धन देने वाली फसल का उत्पादन होता है। देश में हरित क्रांति में जब से बिजली का आगमन हुआ तो किसानों के साथ खेती से जुडे लोगों की स्थिति ही बदल गई। इसके बाद खेतों में ट्यूब वेल लगे और किसानों नें खरीब की फसल के साथ ही रबी की फसल का भी उत्पादन करना शुरू किया। गाँव की अधिकांश कृषि भूमि पर रबी की फसल होने लगी। गांव में रबी की फसल में गैहूं,चना,जौ,मैथी,सरसों आदि फसलों का उत्पादन होता है। खरीफ की फसल में बाजरा, मूंग, ज्वार, बाजरा,  आदि फसलों का उत्पादन किया जाता है। फसल में प्याज,लहसून,जीरा,धनिया आदि फसलों के साथ विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। पिछले कई सालों के मुकाबलें किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई तथा उनके रहन सहन में बदलाव हुआ है।

कृषि विभाग की योजना:

  • माइक्रो मैनेजमेंट
  • आइसोपाम
  • कृषि सांखियकी सुधार योजना
  • कपास योगदान
  • फसलों के क्षेत्रफल एवं उत्पादन आँकड़े
  • फसल बीमा योजना
  • कृषक प्रक्षेत्रों पर प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग

रहन-सहन

इस गाँव का रहन-सहन लगभग साधारण ही है जैसा की हर गाँव में होता है यहाँ के लोग कच्चे एवं पक्के मकान में रहते है जो लोग ग़रीब है उनको सरकार की तरफ से इंदिरा आवास के तहत मकान दिए गये है और जो सक्षम है वे अपने बनाएँ हुए मकान में रहते है गाँव के अधिकतर लोग खेती पर निर्भर है और कुछ लोग नौकरी भी करते है चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट सभी लोग कुछ ना कुछ काम करते रहते है ताकी अपना और अपने परिवार का पेट भर सके!


संसाधन / सुविधाएँ

प्रकतिक संसाधन
ग्राम पंचायत में सभी गाँव मे कुल मिलाकर 01 पोखर एवं 01 नदी है जिनसे गाँव वालों का काम होता है इन पोखरों, नदी से खेतों की सिचाई, गाँव के जानवरों को पीने का पानी एवं गाँव के बच्चे इन पोखरों / नदी में नहाते है गाँव की महिलाएँ कपड़े आदि भी धोती है गर्मी के समय इन पोखरों / नदी से गाँव वालों को पानी की ज़्यादा समस्या नही होती है और इनका काम होता रहता है! गाँव पंचायत में कुएँ भी है!

                                         व्यक्तिगत संसाधन

  ग्राम पंचायत में कुल 52 हॅंडपंप लगे हुए है जो की गाँव के    लोगों ने अपनी सुविधा के अनुसार अपने-अपने घरों में लगा रख्खे है और कुछ हॅंडपंप ग्राम पंचायत ने सार्वजनिक लगाएँ है ताकि रह चलने वालों को पानी की समस्या न हो!

 

मानव संसाधन
ग्राम पंचायत के सभी गाँवों को मिलाकर करीब पंचायत में 5 प्रतिशत मजदूर, 80 प्रतिशत किसान, 6 प्रतिशत नौकरी एवं व्यापारी लोग रहते है किसान अपनी खेती करते है मजदूर खेतों एवं फॅक्टरी, दुकानों में मजदूरी, कुछ सरकारी-कुछ प्राइवेट नौकरी करते है और अपना एवं अपने परिवार का पालन पोषण करते है!

सांस्कृतिक संसाधन
ग्राम पंचायत में सांस्कृतिक भवन नही है पर यदि गाँव में कोई कार्यक्रम जैसे- शादी, होली, दीपावली, ईद, बकरीद आदि कार्यक्रम गाँव वाले मिल कर कराते है उसके लिए सांस्कृतिक भवन / सरकारी स्कूल के भवन आदि ले लेते है और कार्यक्रम समाप्त होने के पश्चात उसकी साफ-सफाई भी करते है!

यातायात के साधन
ग्राम पंचायत रोड से ज्यादा दूर नही है अतः किसी भी जगह से आने जाने के लिए बस और प्राइवेट साधन उपलब्ध हैं, परंतु सड़क से ग्राम पंचायत तक जाने के लिए पैदल या अपनी सवारी से यात्रा करनी पड़ती है पर कुछ ही दूर के लिए| यहाँ से कुछ ही दूरी पर रेलवे स्टेशन है जहाँ से लगभग सभी जगह के लिए ट्रेन मिल जाती है| हवाई साधन के लिए इलाहाबाद जाना पड़ता है एवं लोगों के पास अपने साधन भी है|

सुविधाएँ
स्वास्थ सुविधा
ग्राम पंचायत में एक स्वास्थ केंद्र है जिसमें एक एम. बी. बी. एस. डॉक्टर, एक समान्य डॉक्टर, एक नर्स, एक ए. एन. एम. बैठिति है एवं गाँव वालों का इलाज करते है स्वास्थ केंद्र होने की वजह से गाँव वालों को समान्य बीमारी के लिए शहर नही जाना पड़ता है उसका इलाज यहीं हो जाता है!

कृषि सुविधा
गाँव वालों के पास खेती करने के लिए पर्याप्त खेती है जिसमें वे लोग अपनी सुविधा के अनुसार फसल लगाते है खेतों में धान, गेंहूँ, मक्का, बाजरा, जौ, मटर, चना, दाल, गन्ना, एवं सब्जी आदि की खेती करते है और कुछ लोगों के बाग भी है जिसमें आम, अमरूद, जामुन आदि के पेड़ लगे है!

संचार सुविधा
पंचायत में लगभग 05% बेसिक टेलिफोन फोन है जो की भारत संचार निगम लिमिटेड के है और 75% लोगों के पास मोबाइल फोन है, और गाँवों में पी. सी. ओ. भी है|

बिजली सुविधा
इस पंचायत में लाइट की ज़्यादा समस्या नही है गाँव में लगभग 10 से 14 घंटे लाइट आती है जिसे गाँव वालों को कोई समस्या नही होती है पर लाइट का समय सही न होने के कारण कभी-कभी समस्या उत्पन्न हो जाती है!

रोज़गार सुविधा
नौकरी : पंचायत में लगभग 30% लोग नौकरी करते है (सरकारी / प्राइवेट), 40% लोग किसानी, 30% लोग मजदूरी करते है
फैक्टरी : इस ग्राम पंचायत के आस पास औधोगिक क्षेत्र नही है इस लिए यहाँ पर फैक्टरी कम या ना के बराबर है इस लिए लोगों के पास रोजगार कम है जिसके लिए उन्हे गाँव बाहर जाना पड़ता है |
गाँव में : गाँव में कृषि, पशुपालन, डेरी, सब्जी आदि का व्यपार होता है| मुस्लिम लोग मुर्गी पालन करते है, करीब गाँव में सभी प्रकार की फसलों की पैदा वार होती है|

मनरेगा

 

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) 2005 सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जो गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है और जो व्यापक विकास को प्रोत्साहन देता है। यह अधिनियम विश्व में अपनी तरह का पहला अधिनियम है जिसके तहत अभूतपूर्व तौर पर रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद है ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना। इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी है। यह रोजगार शारीरिक श्रम के संदर्भ में है और उस वयस्क व्यक्ति को प्रदान किया जाता है जो इसके लिए राजी हो। इस अधिनियम का दूसरा लक्ष्य यह है कि इसके तहत टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखे, जंगलों के कटान, मृदा क्षरण जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) को तैयार करना और उसे कार्यान्वित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा गया है। इसका आधार अधिकार और माँग को बनाया गया है जिसके कारण यह पूर्व के इसी तरह के कार्यक्रमों से भिन्न हो गया है। अधिनियम के बेजोड़ पहलुओं में समयबध्द रोजगार गारंटी और 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे रोजगार प्रदान करने में कोताही न बरतें क्योंकि रोजगार प्रदान करने के खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र वहन करता है। इसके अलावा इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि रोजगार शारीरिक श्रम आधारित हो जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का कोई दखल हो। अधिनियम में महिलाओं की 33 प्रतिशत श्रम भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है।
नरेगा दो फरवरी, 2006 को लागू हो गया था। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। दूसरे चरण में वर्ष 2007-08 में इसमें और 130 जिलों को शामिल किया गया था। शुरुआती लक्ष्य के अनुरूप नरेगा को पूरे देश में पांच सालों में फैला देना था। बहरहाल, पूरे देश को इसके दायरे में लाने और माँग को दृष्टि में रखते हुए योजना को एक अप्रैल 2008 से सभी शेष ग्रामीण जिलों तक विस्तार दे दिया गया है।
पिछले दो सालों में कार्यान्वयन के रुझान अधिनियम के लक्ष्य के अनुरूप ही हैं। 2007-08 में 3.39 करोड़ घरों को रोजगार प्रदान किया गया और 330 जिलों में 143.5 करोड़ श्रमदिवसों का सृजन किया गया। एसजीआरवाई (2005-06 में 586 जिले) पर यह 60 करोड़ श्रमदिवसों की बढत है। कार्यक्रम की प्रकृति ऐसी है कि इसमें लक्ष्य स्वयं निर्धारित हो जाता है। इसके तहत हाशिए पर रहने वाले समूहों जैसे अजाअजजा (57प्रतिशत), महिलाओं (43प्रतिशत) और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों (129 प्रतिशत) की भारी भागीदारी रही। बढी हुई मजदूरी दर ने भारत के ग्रामीण निर्धनों के आजीविका संसाधनों को ताकत पहुंचाई। निधि का 68 प्रतिशत हिस्सा श्रमिकों को मजदूरी देने में इस्तेमाल किया गया। निष्पक्ष अध्ययनों से पता चलता है कि निराशाजन्य प्रवास को रोकने, घरों की आय को सहारा देने और प्राकृतिक संसाधनों को दोबारा पैदा करने के मामले में कार्यक्रम का प्रभाव सकारात्मक है।

मजदूरी आय में वृध्दि और न्यूनतम मजदूरी में इजाफा:

वर्ष 2007-08 के दौरान नरेगा के अंतर्गत जो 15,856.89 करोड़ रुपए कुल खर्च किए गए, उसमें से 10,738.47 करोड़ रुपए बतौर मजदूरी 3.3 करोड़ से ज्यादा घरों को प्रदान किए गए।
नरेगा के शुरू होने के बाद से खेतिहर मजदूरों की राज्यों में न्यूनतम मजदूरी बढ गई है। महाराष्ट्र में न्यूनतम मजदूरी 47 रुपए से बढक़र 72 रुपए, उत्तरप्रदेश में 58 रुपए से बढक़र 100 रुपए हो गई है। इसी तरह बिहार में 68 रुपए से बढक़र 81 रुपए, कर्नाटक में 62 रुपए से बढक़र 74 रुपए, पश्चिम बंगाल में 64 रुपए से बढक़र 70 रुपए, मध्यप्रदेश में 58 रुपए से बढक़र 85 रुपए, हिमाचल प्रदेश में 65 रुपए से बढक़र 75 रुपए, नगालैंड में 66 रुपए से बढक़र 100 रुपए, जम्मू और कश्मीर में 45 रुपए से बढक़र 70 रुपए और छत्तीसगढ में 58 रुपए से बढक़र 72.23 रुपए हो गई है।

ग्रामीण सरंचनात्मक ढांचे पर प्रभाव और प्राकृतिक संसाधन आधार का पुनर्सृजन:

2006-07 में लगभग आठ लाख कार्यों को शुरू किया गया जिनमें से 5.3 लाख जल संरक्षण, सिंचाई, सूखा निरोध और बाढ नियंत्रण कार्य थे। 2007-08 में 17.8 लाख कार्य शुरू किए गए जिनमें से 49 प्रतिशत जल संरक्षण कार्य थे जो ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के प्राकृतिक संसाधन आधार का पुनर्सृजन से संबंधित थे। 2008-09 में जुलाई तक 14.5 लाख कार्यों को शुरू किया गया।
नरेगा के माध्यम से तमिलनाडू के विल्लूपुरम जिले में जल भंडारण (छह माह तक) में इजाफा हुआ है, जलस्तर में उल्लेखनीय वृध्दि हुई है और कृषि उत्पादकता (एक फसली से दो फसली) में बढोत्तरी हुई है।

कामकाज के तरीकों को दुरुस्त करना:

पारदर्शिता और जनता के प्रति उत्तरदायित्व: सामाजिक लेखाजोखा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। नरेगा के संदर्भ में सामाजिक लेखाजोखा में निरंतर सार्वजनिक निगरानी और परिवारों के पंजीयन की जांच, जॉब कार्ड का वितरण, काम की दरख्वास्तों की प्राप्ति, तारीख डाली हुई पावतियों को जारी करना, परियोजनाओं का ब्योरा तैयार करना, मौके की निशानदेही करना, दरख्वास्त देने वालों को रोजगार देना, मजदूरी का भुगतान, बेरोजगारी भत्ते का भुगतान, कार्य निष्पादन और मास्टर रोल का रखरखाव शामिल हैं।
वित्तीय दायरा: निर्धन ग्रामीण परिवारों को सरकारी खजाने से भारी धनराशि मुहैया कराई जा रही है जिसके आधार पर मंत्रालय को यह अवसर मिला है कि वह लाभान्वितों को बैंकिंग प्रणाली के दायरे में ले आए। नरेगा कामगारों के बैंकों व डाकघरों में बचत खाते खुलवाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया जा चुका है; नरेगा के अंतर्गत 2.28 करोड़ बैंक व डाकघर बचत खाते खोले जा चुके हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल:

मजदूरी के भुगतान की गड़बड़ियों और मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दूरभाष आधारित बैंकिंग सेवाएं शुरू करने का निर्णय किया है जो देश के सुदूर स्थानों पर रहने वाले कामगारों को भी आसानी से उपलब्ध होगी। बैंकों से भी कहा गया है कि वे स्मार्ट कार्ड और अन्य प्रौद्योगिकीय उपायों को शुरू करें ताकि मजदूरी को आसान और प्रभावी ढंग से वितरित किया जा सके।

वेब आधारित प्रबंधन सूचना प्रणाली:

न्रेगा.एनाइसी.इन ग्रामीण घरों का सबसे बड़ा डेटाबेस है जिसकी वजह से सभी संवेदनशील कार्य जैसे मजदूरी का भुगतान, प्रदान किए गए रोजगार के दिवस, किए जाने वाले काम, लोगों द्वारा ऑनलाइन सूचना प्राप्त करना, आदि पूरी पारदर्शिता के साथ किया जा सकता है। इस प्रणाली को इस तरह बनाया गया है कि उसके जरिए प्रबंधन के सक्रिय सहयोग को कभी भी प्राप्त किया जा सकता है। अब तक वेबसाइट पर 44 लाख मस्टररोल और तीन करोड़ जॉब कार्ड को अपलोड किया जा चुका है।
मंत्रालय का नॉलेज नेटवर्क इस बात को प्रोत्साहन देता है कि किसी भी समस्या के हल को ऑनलाइन प्रणाली द्वारा सुझाया जाए। इस समय इस नेटवर्क के 400 जिला कार्यक्रम संयोजक सदस्य हैं। नेटवर्क नागरिक समाज संगठनों से भी जुड़ गया है।

माँग आधारित कार्यक्रम को पूरा करने के लिए क्षमता विकास:

ग्रामसभाओं और पंचायती राज संस्थाओं को योजना व कार्यान्वयन में अहम भूमिका प्रदान करके विकेन्द्रीयकरण को मजबूत बनाने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गहराई के साथ चलाने में नरेगा महत्त्वपूर्ण है। सबसे कठिन मुद्दा इन ऐजेंसियों की क्षमता का निर्माण है ताकि ये कार्यक्रम को जोरदार तरीके से कार्यान्वित कर सकें।
केन्द्र की तरफ से समर्पित प्रशासनिक व तकनीकी कार्मिकों को खण्ड व उप खण्ड स्तरों पर तैनात किया गया है ताकि मानव संसाधन क्षमता को बढाया जा सके।

राज्यों के निगरानीकर्ताओं के साथ नरेगा कर्मियों का प्रशिक्षण शुरू कर दिया गया है। अब तक 9,27,766 कार्मिकों तथा सतर्कता और निगरानी समितियों के 2,47,173 सदस्यों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
मंत्रालय ने नागरिक समाज संगठनों और अकादमिक संस्थानों के सहयोग से जिला कार्यक्रम संयोजकों के लिए पियर लर्निंग वर्कशॉप का आयोजन किया ताकि औपचारिक व अनौपचारिक सांस्थानिक प्रणाली और नेटवर्क तैयार किया जा सके। इन सबको अनुसंधान अध्ययन, प्रलेखन, सामग्री विकास जैसे संसाधन सहयोग भी मुहैया कराए गए।
संचार, प्रशिक्षण, कार्य योजना, सूचना प्रौद्योगिकी, सामाजिक लेखाजोखा और निधि प्रबंधन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को तकनीकी समर्थन भी प्रदान किया जा रहा है।

निराशाजन्य प्रवास को रोकना:

रिपोर्टों के अनुसार बिहार और देश के अन्य राज्यों की श्रमशक्ति अब वापस लौट रही है। पहले कामगार बिहार से पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात प्रवास करते थे जो अब धीरे धीरे कम हो रहा है। इसका कारण है कि मजदूरों को अपने गाँव में ही रोजगार व बेहतर मजदूरी मिल रही है जिसके कारण कामगार अब काम की तलाश में शहर की तरफ जाने से गुरेज कर रहे हैं। बिहार में नरेगा के अंतर्गत मजदूरी की दर 81 रुपए प्रति दिन है। प्रवास में कमी आ जाने के कारण मजदूरों के बच्चे अब नियमित स्कूल भी जाने लगे हैं।
नरेगा के बहुस्तरीय प्रभावों को बढाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय राष्ट्रीय उद्यान मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, भारत निर्माण, वॉटरशेड डेवलपमेन्ट, उत्पादकता वृध्दि आदि कार्यक्रमों को नरेगा से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में योजनाबध्द व समन्वयकारी सार्वजनिक निवेश को बल मिलेगा। इसके परिणामस्वरूप गामीण क्षेत्रों में लंबे समय तक आजीविका का सृजन होता रहेगा।

रोजगार सहायक के कार्य:

  • रोजगार चाहने वालों का आवेदन प्राप्त करना व आवेदन का सत्यापन करना।
  • सत्यापन उपरांत पंजीकरण का कार्य करना।
  • जॉब कार्ड जारी करना
  • पंचायत क्षेत्र में कार्य मांगने वालों के र्आवेदन स्वीकार करना
  • निर्धारित अवधि में कार्य मांगने वालों के आवेदन स्वीकार करना
  • कार्य पर लगे श्रमिकों के लिए मस्ट्रोल संधारण करना
  • ग्राम पंचायत में प्राप्त राशि का लेखा जोखा रखना
  • कार्य पर लगे श्रमिकों के जॉबकार्ड में इंद्राज करना
  • ग्राम सभाओं का आयोजना करना
  • योजनांतर्गत ग्राम पंचायत क्षेत्रों की वार्षिकी योजना तैयार करना
  • वार्षिक कार्य योजना का ग्राम सभा एवं पंचायत से अनुमोदन प्राप्त कार्यक्रम अधिकारी को प्रेषित करना
  • योजनांतर्गत प्रचार प्रसार के लिए मुख्य मुख्य स्थानों पर दीवार पेंटिंग करवाना
  • योजनांतर्गत समस्त प्रकार के रिकॉर्ड का कम्प्यूराईजेशन करवाना
  • निर्धारित अवधि में भुगतान सुनिश्चित करना
  • सूचना के अधिकार के तहत सक्षम स्तर से अनुमोदन उपरांत निर्धारित शुल्क जमा कर सूचना उपलब्ध करवाना
  • सामाजिक अंकेक्षण करवाना
  • अन्य कार्य जो पंचायत स्तर पर योजना के क्रियान्वय हेतू आवश्यक है का संपादन करना।
  • असफल मेटों को हटाकर दूसरे मेटों को लगाना तथा प्रशिक्षण दिलवाना

हमारा प्रदेश

उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं आगरा, अलीगढ, अयोध्या, बरेली, मेरठ, वाराणसी( बनारस), गोरखपुर, गाज़ियाबाद, मुरादाबाद, सहारनपुर, फ़ैज़ाबाद, कानपुर। इसके पड़ोसी राज्य हैं उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार। उत्तर प्रदेश की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है।

सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर-प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना के मैदान हैं। करीब १६ करोड़ की जनसंख्या के साथ उत्तर प्रदेश केवल भारत का अधिकतम जनसंख्या वाला प्रदेश ही नहीं बल्कि विश्व की सर्वाधिक आबादी वाली उप राष्ट्रीय इकाई है। विश्व में केवल पांच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त अमरीका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर-प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है।

उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर मे स्थित है। यह राज्य उत्तर मे नेपाल, तिब्बत दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व मे बिहार से घिरा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल मे फैला हुआ है यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद मे है। झांसी, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, फैजाबाद, आज़मगढ़, बरेली, मेरठ, मुज्ज़फरनगर, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ, गोरखपुर, सहारनपुर, मथुरा, नॉएडा यहाँ के मुख्य शहर है।

इतिहास

राज्य- उत्तर प्रदेश सम्भागोँ की संख्या- 18 जिलोँ की संख्या- 72 तहसीलोँ की संख्या- 306 विश्वविद्यालयोँ की संख्या- 30 विधानमण्डल- द्विसदनात्मक विधान सभा सदस्योँ की संख्या- 403+1(एंग्लोइँडियन)=404 विधान परिषद सदस्योँ की संख्या- 99+1(एंग्लोइँडियन)=100 लोकसभा सदस्योँ की संख्या- 80 राज्यसभा सदस्योँ की संख्या- 31 उच्च न्यायालय- इलाहाबाद(खण्डपीठ- लखनऊ) भाषा- हिन्दी(उर्दू दूसरी राजभाषा) राजकीय पशु- बारहसिँगा राजकीय पक्षी- सारस या क्रौँच राजकीय पेड़- अशोक राजकीय पुष्प- ब्रम्ह कलश राजकीय चिन्ह- मछली एवँ तीर कमान स्थापना दिवस- 1 नवम्बर, 1956

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जिला वाराणसी

वाराणसी (काशी) की भूमि उम्र के लिए हिंदुओं के लिए परम तीर्थ स्थान दिया गया है. अक्सर कहा जाता बनारस के रूप में, वाराणसी पुरानी दुनिया में रहने वाले शहर है. मार्क ट्वेन ने ये कुछ पंक्तियाँ यह सब कहते हैं: “बनारस इतिहास से पुराना है, परंपरा से अधिक पुराने, पुराने भी कथा से और दो बार उन सभी के रूप में पुराने के रूप में एक साथ रखा लग रहा है”. हिंदुओं का मानना है एक है जो वाराणसी के देश पर मर जन्म और फिर से जन्म के चक्र से मुक्ति और स्वतंत्रता प्राप्त होगा शोभा बढ़ाई है कि. भगवान शिव और पार्वती का वास, वाराणसी के मूल रहे हैं अभी तक अज्ञात है. वाराणसी में गंगा को दूर करने के लिए मनुष्यों के पाप धोने की शक्ति है माना जाता है. गंगा कहा जाता है कि भगवान शिव की और वाराणसी में ट्रेस्सेस में अपने मूल है, यह शक्तिशाली है कि हम नदी के बारे में पता करने के लिए फैलता है. शहर सीखने का एक केंद्र और 3000 से अधिक वर्षों के लिए सभ्यता है. सारनाथ के साथ, वह जगह है जहां बुद्ध ज्ञान के बाद अपना पहला उपदेश, सिर्फ 10 किमी दूर, वाराणसी हिन्दू पुनर्जागरण का प्रतीक रहा है. ज्ञान, दर्शन, संस्कृति, परमेश्वर, भारतीय कला और शिल्प के प्रति समर्पण सभी सदियों के लिए यहाँ निखरा. इसके अलावा जैन, वाराणसी के लिए एक तीर्थ स्थान पर पार्श्वनाथ, 23 तीर्थंकर का जन्मस्थान माना जा रहा है.

वैष्णव और शैव है सह वाराणसी में सौहार्दपूर्वक अस्तित्व. मंदिरों में से एक नंबर के साथ, श्रीमती एनी बेसेंट उसके थियोसोफिकल सोसायटी ‘और पंडित मदन मोहन मालवीय, के लिए घर के रूप में चुना वाराणसी के लिए’ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, एशिया में सबसे बड़ी विश्वविद्यालय संस्थान. आयुर्वेद के वाराणसी में उत्पन्न होने के लिए कहा जाता है और प्लास्टिक सर्जरी, मोतियाबिंद और कलन आपरेशन के रूप में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के आधार माना जाता है. महर्षि पतंजलि, आयुर्वेद और योग के गुरू भी वाराणसी, पवित्र शहर के साथ संबद्ध किया गया था. वाराणसी भी अपने व्यापार और वाणिज्य के लिए मशहूर बेहतरीन रेशम और सोने और चांदी के शुरुआती दिनों के बाद ब्रोकदेस, खासकर के लिए. वाराणसी भी उम्र के लिए सीखने का एक बड़ा केंद्र रहा है. वाराणसी अध्यात्मवाद, रहस्यवाद, संस्कृत, योग और हिन्दी भाषा और सम्मानित लेखकों की पदोन्नति के साथ कभी प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद और तुलसी दास, प्रसिद्ध संत कवि जो राम चरित मानस लिखा है जैसे जुड़ा हुआ है. आप्ट्ली सांस्कृतिक रूप में बुलाया जाता है

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